15 अप्रैल 2025 (UNA) : भारत सरकार ने आयकर बिल 2025 में ऐसे प्रावधान जोड़े हैं, जो टैक्स अधिकारियों को व्यक्तिगत डिजिटल प्लेटफॉर्मों—जैसे ईमेल, सोशल मीडिया और क्लाउड स्टोरेज—तक पहुंचने का अधिकार देते हैं, बिना किसी न्यायिक अनुमति के। यह कदम, जो कथित तौर पर कर चोरी को रोकने के लिए उठाया गया है, नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को कमजोर करने और उनकी गोपनीयता का उल्लंघन करने का खतरा पैदा करता है। इससे एक खतरनाक उदाहरण भी सेट होता है, जहां नौकरशाही को बिना किसी न्यायिक नियंत्रण के असामान्य शक्ति मिलती है।
जबकि भारत की स्वतंत्रता सूचकों में पहले ही सवाल उठ रहे हैं, नागरिकों के अधिकारों को राज्य के राजस्व बढ़ाने के लिए बलि चढ़ाना एक गहरी और अनावश्यक गिरावट को दर्शाता है। यह एक स्पष्ट और गंभीर उल्लंघन है, क्योंकि सरकार को आम नागरिकों की गोपनीयता का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं मिल सकता।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में अपने ऐतिहासिक फैसले में, न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ मामले में, प्राइवेसी को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया था। अदालत ने यह निर्णय दिया था कि नागरिकों को बिना कानूनी सुरक्षा के अंधाधुंध राज्य निगरानी का शिकार नहीं बनाया जा सकता।
इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया था कि व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन संविधान की धारा 21 के तहत नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा। ऐसे में सरकार का यह नया कदम न केवल संविधान का उल्लंघन करता है, बल्कि यह नागरिकों के विश्वास को भी चोट पहुंचाता है।
सरकार को इस विषय में विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिकों के डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा की जाए, और किसी भी प्रकार की अत्यधिक राज्य निगरानी का रास्ता बंद किया जाए। - UNA