15 अप्रैल 2025 (UNA) : भारत में अब बिजली डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेडिंग की राह खुल सकती है। देश की प्रमुख एक्सचेंजेस — मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) — ने सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) को इस संबंध में प्रस्ताव सौंपा है। सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव पिछले महीने भेजा गया था और अब एक्सचेंजेस को रेगुलेटर से अनुमति मिलने का इंतजार है। यदि शुरुआती कॉन्ट्रैक्ट्स को अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है, तो अन्य एक्सचेंजेस भी इस दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं।
इन प्रस्तावित बिजली डेरिवेटिव्स को वित्तीय डेरिवेटिव्स के रूप में डिजाइन किया गया है, जिनका सेटलमेंट नकद (कैश) में होगा। शुरुआत में मासिक कॉन्ट्रैक्ट्स लाए जाएंगे और फिर बाजार सहभागियों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर लंबे समयावधि वाले कॉन्ट्रैक्ट्स पर विचार किया जा सकता है। इन डेरिवेटिव्स का उद्देश्य बिजली वितरण कंपनियों (discoms) और बड़े पावर कंज्यूमर्स को बिजली की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचाव (हेजिंग) करने में मदद करना है।
हालांकि, MCX और NSE ने इस विषय में SEBI को भेजे गए ईमेल का कोई उत्तर नहीं मिला। इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान में स्पॉट बिजली ट्रेडिंग में अग्रणी इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (IEX) शायद बिजली डेरिवेटिव्स के लिए आवेदन न करे। ऐसा इसलिए क्योंकि IEX को इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज का लाइसेंस लेना होगा और SEBI के अन्य नियमों का पालन करना होगा।
SEBI के नियमों के अनुसार, किसी भी स्टॉक एक्सचेंज के लिए कम से कम ₹100 करोड़ की नेटवर्थ ज़रूरी होती है, जो IEX और अन्य स्पॉट एक्सचेंजेस के लिए एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है। इसलिए IEX और पावर एक्सचेंज इंडिया लिमिटेड (PXIL) जैसे खिलाड़ी संभवतः MCX और NSE जैसी एक्सचेंजेस के साथ साझेदारी कर सकते हैं, ताकि उनके स्पॉट रेट्स को डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए रेफरेंस प्राइस के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके।
फरवरी में SEBI ने एक्सचेंजेस और अन्य स्टेकहोल्डर्स को सूचित किया था कि उसने और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) ने बिजली डेरिवेटिव्स की शुरुआत को लेकर आपसी सहमति बनाई है। SEBI की तरफ से जारी नोट में यह स्पष्ट किया गया कि जो भी एक्सचेंजेस इस तरह के डेरिवेटिव्स लॉन्च करना चाहती हैं, उन्हें नए सिरे से प्रस्ताव भेजना होगा, जो SEBI और CERC द्वारा तय की गई अनुबंध विनिर्देशों (contract specifications) पर आधारित होंगे।
दोनों रेगुलेटर्स की एक संयुक्त कार्य समूह (joint working group) ने सिफारिश की है कि इन विनिर्देशों के आधार पर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स से शुरुआत की जाए। - UNA